kanchan singla

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क्या यह मैं हूं...??

मैं लिखना चाहूं खुद को....
जैसे कोई खिलता फूल
या पत्तों पर ठहरी ओस की कोई बूंद

कभी कभी शांत समंदर सी
या कभी खौलता ज्वालामुखी

कभी बारिश की छम छम सी
या कभी ठंडी फुहारों सी

कभी उगते सूरज की लालिमा सी
या ढलती महकी शाम सी

मां की उंगली पकड़ कर चलने वाली वह नन्ही गुड़िया
या फिर बस, ट्रेन, टैक्सी, के पीछे भागने वाली वह लड़की

कभी कभी गुस्से में कुछ भी बोल देने वाली लड़की 
या कभी समझदारी से सब सुलझा देने वाली लड़की 

कई बार लिखना चाहा मैंने खुद को
पर कहां लिख पाई हूं खुद को 
वैसा जैसी हूं मैं
क्या हूं मैं...??
कौन हूं मैं...??
एक छोटा सा शहर हूं
या एक बड़ा सा समंदर
खुद में ही खुद की एक तलाश हूं।।

कभी मुझे लगता है जैसे...
हूं, मैं इन बहती हवाओं का कोई झोंका
जो छू कर गुजरता है
जैसे कोई एहसास छूता है हमें।।

कभी कभी बड़ी मुश्किलों से भी गुजर जाती हूं
पर कभी इन बिखरी जुल्फों को भी नहीं संभाल पाती हूं।।

कभी गुजरती रात सी
कभी उजले सवेरे सी
कभी बिखरी रेत सी
कभी सिमटी सी खुद में ही
कभी टूटे कांच सी
कभी चमकते चांद सी
कभी शीतल नीर सी
कभी खोलते पानी सी
कहीं महकती खुशबू सी
कहीं बिखरते रंगो सी
कभी कोरे पन्नों सी

क्या यह मैं हूं...??

शायद...!!


लेखिका - कंचन सिंगला


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5 Comments

रतन कुमार

10-Dec-2021 03:12 AM

Wahhhhhh Gjb

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Ravi Goyal

06-Dec-2021 11:53 PM

वाह बहुत सुंदर रचना 👌👌

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Niraj Pandey

06-Dec-2021 11:29 PM

बहुत ही बेहतरीन👌

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